ड़ा. अशोक अपनी बिटिया मान्या की कक्षा अध्यापिका के सामने बैठे थे और उसकी अध्यापिका ने उससे कठोर और स्पष्ट प्रश्न पूछा कि क्या आप अपनी बेटी के परीक्षा परिणाम के बारे में चिंतित हैं? वे बोले “जी हाँ! तभी तो समय निकाल कर मिलने आया हूँ। विज्ञान और गणित में निराशाजनक अंक लाई है।” आप अपनी बेटी के तीनों संत्राकों के अंको की गिरावट तो देख रहे हैं पर मैं उसके उत्तर लिखने की शैली में जो गिरावट आई है उससे चिंतित हूँ ।कहाँ वो भाषा में अपनी अलग पहचान रखती थी। सामाजिक विज्ञान में विशिष्टता दिखाती थी। गणित में तो अच्छी है पर अब तो सब विषयों में सामान्य अंक और उत्तर भी सामान्य। अशोक ने गुस्से में कहा कि मुझे तो विज्ञान और गणित की ही चिंता है। आखिर मेरा अस्पताल तो इसी ने देखना है। पर ट्यूशन लगवाने के बाद तो और भी निराशाजनक नतीजा हे। मेम इसे समझाईये कि डाक्टर बनकर वो नाम, दाम
,मान सब आसानी से पायेगी क्योंकि जमीन तो मैंने तैयार कर दी है। ना जाने इसके मन में क्या है ?ये आजकल के बच्चे भी!तब अध्यापिका रेखा ने मुस्काते हुए कहा कि” ड़ा.अशोक आप की बेटी डाक्टर तो बनना चाहती है पर शिक्षाविद बन कर। उसे आप की जमीन नहीं अपना आसमान चाहिए ।
मौलिक और स्वरचित है।
