1300 वे बलिदान दिवस पर शत शत नमन।
महाप्रतापी थे सिंधुपति दाहिर सेन जडहिं कडहि सिन्धुड़ी तोखे कंधारां जोखो सिंध के मामोई फकीरों के इस कथन का अर्थ है, हे सिंध भूमि तुम्हें कंधार की ओर से ही खतरा है। भारत का पश्चिमी सीमा प्रांत सिंध पर प्रारंभ से ही विदेशी आक्रांताओं के हमलों का शिकार रहा है। भारत भूमि पर बुरी नजर रखने वाले ईरानी, ईराकी, यवन, कंधार के रास्ते सिंध के रास्ते भारत भूमि में प्रवेश करने का कुत्सित प्रयास करते रहे हैं मगर जिन जांबाजों ने आतताइयों को नाकों चने चबाए, उनमें सिंध देश के महान सपूत शूरवीर और प्रतापी महाराजा दाहिर का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
महाराजा दाहिर छिब्बर ने स्वयं तो प्राणों की कुर्बानी देकर देश की रक्षा की अपितु उनके पूरे परिवार ने देश की रक्षा में अपने प्राणों की बलि दे दी। छठी शताब्दी में सिंध पर देवाजी वंश के राजा राय साहरस का शासन। ईरान के शाह नीमोज ने आमने सामने के युद्ध में जब देखा कि पार पाना मुश्किल है, तो उसने छल कपट का सहारा लेकर राजा साहरस को घेर कर हत्या कर दी। युद्ध भूमि में अपने पिता के वीर गति प्राप्त करने का समाचार जब युवराज राय साहसी को मिला तो वह शेष सेना लेकर युद्ध भूमि में आ डटा।
सिंधी सैनिकों की बहादुरी से नीमोज प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका और बिना निर्णय के युद्ध क्षेत्र छोड़कर अपने देश लौट गया। युवराज राय साहसी ने सिंध का शासन संभाला। वीर प्रतापी राजा साहसी राय का कोई उत्तराधिकारी पैदा नहीं हुआ। लिहाजा उनके निधन के बाद उनके प्रधानमंत्री कश्मीरी ब्राह्मण चच ने संभाला। राजा दाहिर, चच के वंशज थे। जिन्हें सन् 644 ई़ में सिंध का राजा होने का गौरव प्राप्त हुआ। दाहिर के पिता की मृत्यु के बादर सिंध शासन उनके चाचा चंदर ने ई़ सन् 637 से 644 तक संभाला क्योंकि जब राजा दाहिर बालिग नहीं हुए थे।
राजा दाहिर के चाचा ने ब्राह्मण कुल का होने के बावजूद बौद्ध धर्म स्वीकार किया और उनके शासनकाल में सिंध का राजधर्म बौद्ध धर्म घोषित किया गया। महाराजा दाहिर को उत्तराधिकार में कई विवाद मिले, जिनमें उनके पिता राजा चच के द्वारा लोहाणा, जाट और गुर्जर जाति के लोगों के अधिकारों को छीनकर उन्हें पदच्युत किया गया था जिसके कारण इस जाति के लोग शासन से नाराज थे। महाराजा दाहिर के चाचा द्वारा बौद्ध धर्म ग्रहण करने के कारण ब्राह्मण वर्ग नाराज था। इन सभी लोगों को साथ लेकर चलना और देश की रक्षा करना महाराजा दाहिर के लिए एक चुनौती थी।
महाराज दाहिर ने शासन संभालते ही फिर सनातन हिंदू धर्म को राजधर्म घोषित कर ब्राह्मण समाज को अपने पक्ष में कर लिया। महाराजा दाहिर ने जबरन मजदूरी प्रथा को समाप्त कर दिया। महाराजा दाहिर ने यह व्यवस्था की कि यदि कोई एक साथ कर नहीं चुका सकता है, तो वह किश्तों में शासकीय कोष में जमा करा सकता है। इससे प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई।
सिंध पर हुए 13 हमलों को उन्होंने नाकाम किया। महाराज दाहिर की दोनों बेटियों सूर्य कुमारी और परमाल ने गांव गांव में घूमकर सिंधी सपूतों को मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रेरित किया। जाटों, गुर्जरों और लोहाणों को फिर सेना में सम्मिलित कर उन्हें अधिकार देकर समाज में उनकी प्रतिष्ठा को स्थापित किया। सिंधी सेना में मौजूद ज्ञान बुद्धि व मोक्षवासव ने विश्वासघात कर दिया।
महाराजा दाहिर का खून खौल उठा। महल में मौजूद सेना के साथ हाथी पर सवार होकर रणभूमि को निकल पड़े। भीषण युद्ध में अरब सेना के पांव उखड़ने लगे तो उन पर खुद उन्हीं के साथियों ने आक्रमण कर दिया। गद्दार ज्ञान बुद्धि और मोक्षवासव ने पहले से बिछाए गए विस्फोटकों में आग लगा दी, जिससे सेना के हाथी और घोड़े बिदक गए।
महाराजा दाहिर जिस हाथी पर सवार थे उसके होदे में आग लग गई। बिगड़े हुए हाथी ने चिंघाड़ते हुए नदी में छलांग लगा दी, महाराज दाहिर ने भी नदी में छलांग लगा दी। महाराज नदी से बाहर आते नदी किनारे खड़े अरबी सैनिकों ने तीर और भालों से उनके शरीर को छलनी कर दिया। इस तरह एक महान योद्धा जन्मभूमि पर कुर्बान हो गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन मधुकर भागवत शनिवार को अजमेर आ रहे हैं। सिन्धुपति महाराजा दाहिरसेन के 13 सौ वें बलिदान दिवस पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे। बलिदान दिवस समारोह में राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, दिल्ली एवं गुजरात से करीब 12 हजार लोग हिस्सा लेंगे। सिंधुपति महाराजा दाहिरसेन समारोह समिति व भारतीय सिंधु सभा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित समारोह की सभी तैयारियों को पूरा कर लिया गया है।
प्रेषक: संदीप छिब्बर,
संगठन सचिव,
जालंधर मोहयाल सभा
Jai Mohyal Ji.
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