भारतीय इतिहास के पन्नों में अनेक ऐसे नायक हुए हैं जिन्होंने धर्म, सत्य और न्याय की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। ऐसे ही एक महान चरित्र हैं — पंडित कृपा राम दत्त, जिन्होंने सिख धर्म और हिन्दू धर्म दोनों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय रचा। वे न केवल एक वीर योद्धा, बल्कि धर्म के प्रहरी और समर्पित ब्राह्मण नेता भी थे।
पंडित कृपा राम दत्त का जन्म 17वीं शताब्दी में कश्मीर के एक प्रतिष्ठित मोहयाल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह उस समय के प्रमुख विद्वान, साहसी और निष्ठावान ब्राह्मण थे, जब कश्मीर में मुग़ल शासक औरंगज़ेब के शासनकाल में हिन्दुओं पर भयंकर अत्याचार हो रहे थे। धार्मिक स्वतंत्रता छीन ली गई थी, मंदिरों को तोड़ा जा रहा था और ब्राह्मणों को ज़बरन इस्लाम कबूल करने के लिए विवश किया जा रहा था। इस संकट की घड़ी में पं. कृपा राम दत्त ने पूरे कश्मीरी हिन्दू समाज का नेतृत्व किया।
धर्म रक्षा हेतु गुरु तेग बहादुर जी की शरण में सन् 1675 में, पंडित कृपा राम दत्त लगभग 500 कश्मीरी ब्राह्मणों के साथ आनंदपुर साहिब पहुंचे और गुरु तेग बहादुर जी से भेंट की। उन्होंने विनती की कि वे औरंगज़ेब की क्रूरता से कश्मीरी हिन्दुओं को बचाएं।
गुरु तेग बहादुर जी ने यह बात गंभीरता से ली। उन्होंने अपने पुत्र गुरु गोबिंद राय (बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी) से पूछा कि धर्म की रक्षा के लिए कौन अपने प्राण त्याग सकता है? इस पर गोबिंद राय ने उत्तर दिया – “इससे बड़ा कौन हो सकता है पिता जी, आप ही इस कार्य के लिए सबसे उपयुक्त हैं।”
यह उत्तर सुनकर गुरु तेग बहादुर जी ने दिल्ली जाकर औरंगज़ेब से ललकार भरी और अंततः चांदनी चौक, दिल्ली में धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दे दी।
यह इतिहास का एक अद्भुत क्षण था जहाँ एक हिन्दू ब्राह्मण और एक सिख गुरु साथ आए धर्म की रक्षा के लिए उनके प्रयासों ने गुरु साहिब के बलिदान को ऐतिहासिक और युगांतरकारी बना दिया।
बाद में, पं. कृपा राम दत्त ने गुरु गोबिंद सिंह जी से दीक्षा ली और उनका साथ दिया। वह उनके सैनिकों में शामिल हुए, और जीवनपर्यंत सिख धर्म की सेवा करते रहे।
पंडित कृपा राम दत्त उन विरलों में से एक हैं, जिनका योगदान हिन्दू-सिख एकता का प्रतीक बन गया। उनका नाम हमें यह याद दिलाता है कि जब धर्म पर संकट आता है, तब धर्म और जाति से ऊपर उठकर मानवता और सत्य के लिए एक होना चाहिए।
पंडित कृपा राम दत्त जी का जीवन साहस, समर्पण और धर्म निष्ठा का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने न केवल कश्मीरी ब्राह्मण समाज की रक्षा की, बल्कि इतिहास को भी नई दिशा दी। उनका साहस और उनका योगदान आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक है। वे हमें सिखाते हैं कि धर्म केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि सत्य के लिए खड़े होने का साहस है।