भाई परमानन्द जी की अंडमान जेल अवधि में उनकी पत्नी भाग्यसुधि ने अपार कष्ट सहे ।अपने मासूम बच्चों के साथ बीमारी और गरीबी में गुजारा किया ।दो मासूम बच्चियां क्षयरोग एवं उपयुक्त उपचार न मिलने कारण स्वर्ग सिधार गई। 15 रुपए मासिक पर शिक्षिका की नौकरी की। क्रान्तिकारी की पत्नी होने के कारण अडोसी पडोसी भी मदद करने को कतराते थे।अंग्रेजो ने भाईजी के मकान को भी तोड़-फोड़ कर जला दिया था।
परन्तु तेजस्वनी भाग्यसुधि ने साहस नहीं छोड़ा । 20 अप्रेल 1920 को भाई परमानन्द जी को रिहा कर दिया गया। इसका देशभर में स्वागत हुआ। हजारो शिष्य मदद को दौड़ पड़े। लाहौर में भाईजी की मदद के लिए विशेष कोष 20 हजार रुपए एकत्र किया गया जो आज के लगभग करोड़ो रुपए के समान था। परन्तु भाई परमानन्द जी ने उक्त सहायता राशि स्वीकार नहीं की । उन्होने कहा देश के लिए कुर्बानी, त्याग की कोई कीमत नहीं होती। मैने पूर्वजो की परम्परा का निर्वाह किया है ।राष्ट्रभक्ति देश सेवा का कोई मूल्य नहीं होता ।
