स्वर्गीय श्री कृष्ण गोपाल दत्ता जी का जन्म 2 अप्रैल 1932 को गांव भाराकू, रावलपिंडी में हुआ था। उनके दादाजी मेहता दीनानाथ दत्ता पटवारी थे। दत्ता परिवार की इस गांव में गहरी जड़ें थीं।
*शिक्षा और संघ से जुड़ाव*
श्री कृष्ण गोपाल दत्ता जी की प्रारंभिक शिक्षा रावलपिंडी में हुई। वह रावलपिंडी के मोहयालों वाली गली में लगने वाली शाखा में बाल स्वयंसेवक के रूप में संघ से जुड़े। उन्हें स्वयंसेवक बनाने का श्रेय मास्टर तारा सिंह के भाई को जाता है।श्री
कृष्ण गोपाल दत्ता जी ने अपनी नौकरी खादी ग्रामोद्योग में की। उनकी पहली नियुक्ति मणिपुर में हुई और बाद में उनकी बदली श्रीनगर में हुई। 1975 के आपातकाल के दौरान, वह रादौर आ गए और 2002 तक वहीं रहे। रादौर में रहते हुए, उन्होंने विश्व हिंदू परिषद, धर्म जागरण और तहसील बौद्धिक प्रमुख के दायित्व को निभाया।
2002 में, श्री कृष्ण गोपाल दत्ता जी यमुनानगर आ गए और सेवाभारती यमुनानगर की सेवा की। उन्होंने विभिन्न प्रकल्प चलाए, जिनमें सिविल अस्पताल यमुनानगर में मरीजों को दूध, चाय, रस और फल वितरण शुरू किया, जो आज तक चल रहा है। इसके अलावा, उन्होंने नेत्रदान की मुहिम चलाई और गांव कालानसी का नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है।
श्री कृष्ण गोपाल दत्ता जी के बड़े पौत्र गुलमहक दत्ता ने ITC जैतो पंजाब से और छोटे पौत्र ने प्रथम वर्ष हिसार से किया। उनकी पुत्रवधू ने होशियारपुर से राष्ट्रीय सेविका का वर्ग किया। उनकी प्रेरणा से उनकी धर्म पत्नी ने भी रक्तदान और मृत्यु के पश्चात नेत्रदान किया।
स्वर्गीय श्री कृष्ण गोपाल दत्ता जी की सेवाभावी विरासत आज भी जीवित है। उनके कार्यों और आदर्शों को याद करते हुए, हम उनके दिखाए मार्ग पर चलने का प्रयास कर सकते हैं।