पितृ दिवस विशेष: मेरे लिए गुडिया ना लाना पर पापा जल्दी आ जाना: जीके छिब्बर

मोहयाल समाचार साहित्य जगत
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मेरे लिए गुडिया ना लाना पर पापा जल्दी आ जाना
यह आंनद बक्शी का,पिता बच्चों के संबंधों का मार्मिक फिल्मी गीत।
हमारी संस्कृति में माता पिता का दिन तो प्रत्येक दिन होता हैं लेकिन आज के युग में परिवार का महत्व वह नही रहा दादा दादी, नाना नानी, भुवा,मौसी,मामा मामी, चाचा चाची,ताया ताई के रिश्ते नाम के रह गए हैं।
आजकल बच्चे माता पिता को ही सम्मान दे दे तो जीवन सफल हो जाता हैं लेकिन माता पिता की भूमिका आज भी बच्चों के पालन पोषण मे समर्पित हैं इस पर सवाल नही उठाया जा सकता एक पिता की जिम्मेदारी उसके माता पिता,पत्नि और बच्चों को सुखद जीवन देने की होती हैं उसे सबको समय और संमान देना होता हैं समन्वय स्थापित करना होता हैं जो एक आसान काम नही हैं।
परिवार में समस्या उस समय गम्भीर हो जाती हैं जब पिता परिवार से दूर अथवा विदेश में नौकरी करता हैं और बच्चे पिता के दुलार से वंचित रहते है और मां को ही जिम्मेदारी निभानी होती हैं पिता भी बच्चों के .सुख.से वंचित रहता हैं।
बच्चों और पिता के संबंध की इसी दशा की अभिव्यक्ति भावनात्मक विरह वेदना का चित्रण 1967 में प्रदर्शित फिल्म तकदीर मे गीतकार आंनद बक्शी ने बहुत सुंदर गीत लिखा था जिसे लता मंगेशकर, सुलक्षणा पंडित और उषा खन्ना ने उसी विरह वेदना से गाया और लक्ष्मी कांत प्यारे लाल का था। यह गीत सुनकर आंखों में आंसू ला देता है।

लेख के लेखक: वरिष्ठ पत्रकार एवं अधिवक्ता गोपाल कृष्ण छिब्बर , भोपाल

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