हम सभी मोहयालों को जानना जरूरी है कैसे हमारे दादा दादी, माता-पिता प्रतिकूल परिस्थितियों को झेलते। हुऐ हिन्दूसतान पहुंचे ।
रावलपिंडी नगर कि स्थापना राजपूत राजा बप्पा रावल ने कि थी रावल राजपूत के कारण इस नगर कि नाम रावलपिंडी पड़ा यहां के हर नागरिक को सम्मान से बप्पा जी कहते थे जो बाद मे भापपा जी हो गया आज भी रावलपिंडी के रहने वाले खुखरेन, मोहयाल और मुस्लिम के लिए भापपा प्रयोग किया जाता है रावलपिंडी के लोग लम्बे कद के थे तथा बहुत ही सलीके से रहते थे तथा सिर पर तुरले वाली पगड़ी पहनते थे रावलपिंडी के मोहयाल संगठित थे तथा उनके अपने मोहल्ले थे प्रसिद्ध मोहयालो वाली गली का जिक्र भीष्म साहनी के नावल तमस मे भी आता है रावलपिंडी के मोहयाल खेती-बाड़ी करते थे और सेना मे रावलपिंडी के मोहयाल कि काफी संख्या थी रावलपिंडी से कोहमरी जो वहां का हिल स्टेशन है पर पड़ने वाला गांव भाराकू पूरा दत्ता बिरादरी का था यही पर अब इस्लामाबाद बसा है मैहता दीनानाथ दता जी यहा के पटवारी थे तथा मशहूर पहलवान भी थे यहां के थानेदार भी केशदारी दत थे जो विभाजन के बाद लुधियाना मे बस गए ।
न केवल रावलपिंडी शहर बल्कि गांवों मे भी मोहयाल काफी,गिणती मे रहते थे खालसा,तोह खालसा,दारा बकीशा ( डेरा बख्शी या) गुरानियान ( गुलीयाना) हरनाल,थीग,गुजरखा, कुटीर दुबेरकला आदि मे काफी मोहयाल परिवार रहते थे ।
काफी नुकसान मोहयालो का ईन गांवों मे हुआ बलोच सैनिक जेहादियों के साथ मिलकर आक्रमण कर रहे थे बच्चे खुचचै परिवार झेलम के वाह और जाता कैम्प मे लाए गए तथा वहां से हिन्दू संतान बहुत कठिनाई झेलते हुए पहुंचे।
