लाहौर भगवान श्री राम जी के पुत्र लव द्वारा बसाया गया शहर, शहर मे जो इमारतें थी उसमें 60 % के स्वामी हिन्दू और सिख थे । इस प्रकार छोटे -बडे कारखानों के मालिक भी हिन्दू -सिख थे । लाहौर शैक्षणिक दृष्टि से भी अत्यन्त प्रगति वाला नगर था तथा लाहौर की शैक्षणिक, व्यापारिक व स्वास्थ्य संबंधी लगभग सभी सुविधाएं हिन्दू ही उपलब्ध करा रहे थे इसलिए अन्त तक यही विश्वास था । यह भारत का ही अंग बनेगा पर यह न हो सका ।
लाहौर के डी ए वी व सनातन धर्म कालेज के होस्टल देशभक्त युवाओं के गढ़ थे जहां पर भी कोई संकट आता यह सहासी छात्र वहां पहुंच जाते
पर एक बार इस कार्य मे कठिनाई आ गई डी ए वी होस्टल के अधीक्षक थे प्राध्यापक आशीवार्द लाल(प्रसिद्ध इतिहासवेता,) उन्हें पता चला कि रात को उनके होस्टल के लड़के बिना पूछे ही बाहर जाते हैं । इसकी शिक़ायत उन्होंने प्राचार्या श्री गोवर्घन लाल दत्ता जी से कि कोई घटना घट गई तो जिम्मेदारी मेरी है उनका तर्क भी ग़लत नहीं था पर उनकी भी इच्छा थी , कि समाज रक्षा कार्य होने चाहिए प्राचार्य गोवर्धन लाल दत्ता जी (जो बाद मे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति बने ) ने कहा वे पूछकर नहीं जाते यह अच्छा है वे समाज रक्षा के काम मे लगे है, जिसकी आज आवश्यकता है उन्हें मत रोको तुम आंखें मूंद लो अगर कोई धटना धटती है तो उसकी जिम्मेदारी मुझ पर डाल देना ऐसी थी साहनुभूति उन दिनों ।
लाहौर जिले का एक और शहर था कसूर कहा जाता है कि इस नगर को भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने बसाया था। कसूर मे हिन्दूओ का दबदबा था । यहां के अधिक्तर व्यापारी संपन्न व जागरूक थे । जब उन्हें पता चल गया कि कसूर पाकिस्तान मे जाएगा तो उन्होंने बच्चों तथा महिलाओं को फिरोजपुर तथा अन्य शहरों को भेजना शुरू कर दिया जिसके बारे मे निश्चित था कि वे भारत मे रहेंगे केवल4-5 लोगो का कतल हुआ बाकी सब बच कर सुरक्षित निकलने मे कामयाब हो गए कसूर अपनी कसूरी मेथी तथा जुतती के लिए आज भी याद किया जाता है ।
