गुत्थियों को सुलझा लो नरम बातों से

साहित्य जगत
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गुत्थियों को
सुलझा  लो नरम बातों से
आने दो बाहर भीतर की पीड़
हर अनदेखा जख्म उभरने दो
मत सोचो दुनियावी रीति -नीति
जो दबा है सदियों से गुफा में
आ जाने दो बाहर नग्न रूप में
फाड़ कर  बनावटी चमकीले पर्दे
दिखा लेने  दो असली किरदार
भाषा ,संवाद, औपचारिक व्यवहार
भूल कर सिर्फ सीधा संवाद सपाट बातें
शुष्क आँखें, तमतमाता चेहरा और आवाज
सच्ची ,कड़वी आग उगलती यादें
बेरोकटोक अनगढ़, या तराशा झूठ -सच
पिघलने दो, बहने दो धाराप्रवाह इन्हें
गुत्थियों को सुलझने दो।

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