चौधरी गणेश दास जी दत्त

मोहयाल शख्सियत
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चौधरी गणेश दास जी दत्त मोहयाल बिरादरी के इतिहास में एक ऐसे युगद्रष्टा थे, जिन्होंने समुदाय को सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक रूप से संगठित करने का कार्य किया। उनका जीवन केवल अपने परिवार या क्षेत्र तक सीमित नहीं था, बल्कि वे संपूर्ण मोहयाल समाज को नई दिशा देने वाले महान व्यक्तित्व के रूप में याद किए जाते हैं।

चौधरी गणेश दास जी दत्त ज़फ़रवाल दत्तान (पंजाब) से संबंध रखते थे। उनके पूर्वजों ने महाराजा रणजीत सिंह की सेना में महत्वपूर्ण सेवाएं दी थीं, जिसके सम्मानस्वरूप उन्हें लाहौर में ज़मीन प्रदान की गई थी। इस समृद्ध और सम्मानित पृष्ठभूमि ने उन्हें नेतृत्व, संगठन और समाज-सेवा की प्रेरणा दी।

उन्नीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में मोहयाल समाज विभिन्न क्षेत्रों में बिखरा हुआ था और सामाजिक-सांस्कृतिक एकता की कमी महसूस की जा रही थी। चौधरी गणेश दास जी दत्त ने इस आवश्यकता को भली-भांति समझा और मोहयाल बिरादरी के लिए एक साझा मंच बनाने का संकल्प लिया।
उनके अथक प्रयासों का परिणाम 1891 में लाहौर में मोहयाल मित्तर सभा की स्थापना के रूप में सामने आया। यही सभा आगे चलकर जनरल मोहयाल सभा के नाम से जानी गई, जो आज भी मोहयाल समाज को एकजुट करने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। इस मंच ने न केवल समाज को संगठित किया बल्कि शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में भी ठोस पहल की।

चौधरी गणेश दास जी दत्त का मानना था कि किसी भी समाज की प्रगति शिक्षा के बिना संभव नहीं है। उन्होंने अपने समकालीन साथी बख्शी जोग ध्यान बाली के साथ मिलकर मोहयाल युवाओं में उच्च शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने का बीड़ा उठाया।
उन्होंने लाहौर में मोहयाल छात्रों के लिए एक बोर्डिंग हाउस की व्यवस्था की, जिससे दूर-दराज के विद्यार्थी भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें। उस समय यह एक अत्यंत प्रगतिशील और दूरगामी सोच थी, जिसने समाज के कई युवाओं को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाया।

चौधरी गणेश दास जी दत्त सामाजिक और धार्मिक सुधारों के लिए प्रसिद्ध आर्य समाज आंदोलन से गहरे प्रभावित थे। आर्य समाज के राष्ट्रवादी और व्यावहारिक दृष्टिकोण ने उनके विचारों को नई दिशा दी।
उनकी इसी प्रेरणा का परिणाम था कि उन्होंने लाहौर में कन्या पाठशाला और आर्य गर्ल्स स्कूल की स्थापना की। यह पहल उस समय महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में एक साहसिक कदम मानी गई। उन्होंने यह सिद्ध किया कि समाज की उन्नति में महिला शिक्षा की भूमिका अनिवार्य है।

देश में जब आज़ादी की लहर चल रही थी, तब चौधरी गणेश दास जी दत्त ने भी समाज को जागरूक करने के लिए कई प्रेरक भाषण दिए। एक बार एक उकसाने वाले भाषण के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, परंतु वे अपने ठोस तर्कों और तेजस्वी व्यक्तित्व से मजिस्ट्रेट को प्रभावित करने में सफल हुए। परिणामस्वरूप उन्हें सम्मानपूर्वक रिहा कर दिया गया। यह घटना उनके साहस और नेतृत्व क्षमता को दर्शाती है।

30 दिसंबर, 1938 को चौधरी गणेश दास जी दत्त का निधन हुआ। उनके निधन पर शिक्षा सुधारक महात्मा हंसराज जी ने गहरे दुख के साथ कहा—

> “मेरा दाहिना हाथ टूट गया है।”

यह वाक्य इस बात का प्रतीक है कि चौधरी गणेश दास जी दत्त केवल मोहयाल समाज के नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के लिए एक आधार स्तंभ थे।

चौधरी गणेश दास जी दत्त का जीवन सेवा, समर्पण और समाज सुधार का प्रेरक उदाहरण है। उन्होंने मोहयाल बिरादरी को एकजुट करने के साथ-साथ शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक सुधार के लिए जो योगदान दिया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक है।
मोहयाल समाज उनके प्रयासों का सदैव ऋणी रहेगा और उनका नाम हमेशा एक महान समाज सुधारक और दूरदर्शी नेता के रूप में लिया जाएगा।

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