दिल्ली, 24 सितम्बर 2025।
24 सितम्बर 1947 मेरी ज़िन्दगी का सबसे काला दिन था। उस भयावह दिन की याद आज भी मेरे मन को कंपा देती है। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद हमारी ट्रेन लगभग तीन हज़ार हिंदुओं को सुरक्षित भारत ला रही थी। लेकिन पंजाब के कामुकी रेलवे स्टेशन (गुजरांवाला और लाहौर के बीच) पर यह ट्रेन बेरहमी से हमला झेलने को मजबूर हुई। उन निर्दोष यात्रियों में से लगभग ढाई हज़ार लोगों को निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया गया—जिनमें मेरे अपने 11 परिजन भी शामिल थे।
तब मेरी उम्र मात्र 10 वर्ष थी। मैं केवल इस तरह बच पाया कि अपने चाचा की निर्जीव देह के नीचे छिप गया, जबकि हमलावर चारों ओर हत्या और लूट में लगे थे। मेरी 90 वर्षीय दादी ने प्राण त्यागने से ठीक पहले उन्हें श्राप दिया—
“तुम्हारे पास कुछ नहीं बचेगा, तुम सब भूखों मरोगे… क्यों हमें मार रहे हो?”
आज उनकी ये बातें सच होती प्रतीत होती हैं। पाकिस्तान की लगभग 45% आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुज़ार रही है और भयंकर खाद्य संकट का सामना कर रही है।
आइए, हम उन 20 लाख से अधिक आत्माओं को नमन करें, जिन्होंने विभाजन के दौरान अपनी जानें गँवाईं। उनकी कुर्बानी ने हमें स्वतंत्रता दी और हमारे धर्म की रक्षा की।
हमें अपना अतीत कभी नहीं भूलना चाहिए—क्योंकि जो अपने इतिहास को याद रखते हैं और उससे सीखते हैं, वही सदा उन्नति की राह पर चलते हैं।
— पी. एल. मेहता
(व्यक्तिगत संस्मरण)
“सम्माननीय मेहता जी , जीएसएम के उपाध्यक्ष योगेश मेहता के पिताजी हैं ”