गया एक ऐसा स्थान है जो धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह शहर बिहार में स्थित है और श्राद्ध कर्म और पिंडदान के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। गया में श्राद्ध कर्म और पिंडदान करने से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है और दिवंगत आत्मा को सद्गति और स्वर्ग लोक में स्थान मिलता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने राजा दशरथ की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया था। गया को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है और यहां पर देश-विदेश से लोग आते हैं जो अपने पूर्वजों को पिंडदान करते हैं।
गया नगर न केवल हिंदुओं के लिए बल्कि बौद्ध धर्म के लिए भी बहुत पवित्र स्थल है। बोधगया को भगवान बुद्ध की पवित्र भूमि माना जाता है और यहां पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया हुआ है।
गया में कर्मकांड के लिए पंडित और पुरोहित की आवश्यकता होती है जो सही मार्गदर्शन दें। यहां पर अविभाजित पंजाब, जम्मू-कश्मीर,हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के पुरोहित पंडित हीरानाथ दाढ़ीवाले (पांच भाई) हैं
*गया में पुरोहित की जानकारी*
गया में कई पंडित और पुरोहित हैं जो आपको सही मार्गदर्शन दे सकते हैं। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने समुदाय के पुरोहित की जानकारी प्राप्त करें जो आपको सही जानकारी और मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।
मोहयाल समुदाय के पुरोहित
मोहयाल समुदाय के पुरोहित हीरानाथ दाढ़ीवाले ( पाच भाई) हैं जोकि दो सौ साल से अधिक पीढ़ी दर पीढ़ी पुरोहित का कार्य कर रहे हैं। वह आपको सही जानकारी और मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं और आपके पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म और पिंडदान करने में मदद कर सकते हैं। पुरोहितों द्वारा दो सौ साल पुरानी धर्मशाला जिसका नाम पंजाबी धर्मशाला के नाम से प्रसिद्ध हैं । इस धर्मशाला में एसी और नान एसी रूम सुविधाजनक हैं।
गया तीर्थ की पौराणिक कथा
गया तीर्थ की पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर नामक एक असुर ने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी से एक वरदान प्राप्त किया था। इस वरदान में, उसने अपने शरीर को पवित्र बनाने और अपने दर्शन से लोगों के पापों को मुक्त करने की शक्ति मांगी थी। ब्रह्माजी ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे यह वरदान दे दिया।
इस वरदान के प्राप्त होने के बाद, लोगों में पाप करने का भय समाप्त हो गया और वे बेरोकटोक पाप करने लगे। इसके परिणामस्वरूप, स्वर्ग और नरक का संतुलन बिगड़ने लगा और पापी लोग भी स्वर्ग में पहुंचने लगे। इस समस्या का समाधान करने के लिए, भगवान विष्णु सभी देवताओं के साथ गयासुर के पास पहुंचे और उससे यज्ञ के लिए एक पवित्र स्थान की मांग की।
गयासुर ने अपनी तपस्या के बल पर भगवान विष्णु की बात मान ली और यज्ञ के लिए अपना शरीर देने का निर्णय किया। जब गयासुर लेट गया, तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। गयासुर के पुण्य प्रभाव से वह स्थान एक पवित्र तीर्थ स्थल बन गया।
इस पवित्र स्थल पर, भगवान विष्णु ने यज्ञ किया और गयासुर के शरीर पर 360 वेदियां बनाई गईं। लेकिन समय के साथ, इनमें से केवल 48 वेदियां ही शेष रह गई हैं। ऐसा माना जाता है कि गयासुर के विशुद्ध शरीर में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव और प्रपितामह निवास करते हैं। इसलिए, पिंडदान और श्राद्ध कर्म के लिए गया तीर्थ को एक उत्तम स्थान माना जाता है।
गया तीर्थ की महत्ता
गया तीर्थ हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और यह पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए एक प्रमुख स्थल है। यहां पर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं। गया तीर्थ की पौराणिक कथा और इसके महत्व के कारण, यह स्थल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।