संदीप छिब्बर ने अपने पिताश्री से विभाजन की विभीषिका के बारे जो सुना वह शब्दों में लिखा रहे हैं।
यह तस्वीर लगभग 75 साल पुरानी हैं ,मीरपुर की जो अब पाकिस्तान में है (शायद 1946 ईस्वी की ) ….. तस्वीर में मेरे ताया जी स्वर्गीय श्री सुदर्शन छिब्बर खड़े हैं, साथ में मेरी भुआ (जिनकी विभाजन में मृत्यु हो गई) और नीचे उनकी नौकरानी बैठी है, यह तस्वीर है, मीरपुर (पीओके) में उनकी हवेली में खींची गईं थी। …….उनके पहने हुए कपड़े, उस समय में भी ब्लेज़र कोट , मेरे भुआ के हाथ और टखनों में गहने, उस समय में भी नौकरानी, सुंदर पक्का फर्श, नक्काशीदार लकड़ी के फर्नीचर ने दिखाता है कि उस समय में वो कितने सम्पन्न और समृद्ध थे …….. विभाजन ने न केवल उनकी सम्पन्नता, सुख, हवेली, धन, सोना जायदाद को छीन लिया, बल्कि एक भरे पूरे खुशहाल परिवार के कई सदस्यों को भी जुदा कर दिया।……….. इस दुखदाई विभाजन में केवल मेरे पिता श्री सतीश कुमार छिब्बर और उनके बड़े भाई श्री सुदर्शन छिब्बर जीवित बचे और सुरक्षित रूप से भारत पहुंचने में सफल रहे थे। बाकि उनके पिता, माता, बहनों, दो छोटे भाईयों, दादी और बहुत से करीबी रिश्तेदारों को उनकी आंखों के सामने अत्याचारी पाकिस्तानियों ने बेरहमी से मार डाला था ….. पैसा, सोना, कीमती कपड़े और यहां तक कि उनके पास मौजूद खाद्य सामग्री भी खुंखार पाकिस्तानी भेड़ियों द्वारा छीन ली गई थी। …… मेरे पिता और ताया कई भयंकर कत्लेआमो से बचते बचाते हुए और अकथनीय हालातों से जूझते हुए एक दूसरे के होंसले, सहारे और भाग्य के कारण जीवित रहने और यहां तक पहुंचने में सफल रहे थे। …. अब भी जब हमारे पिता जी उस समय की बात करते हैं, हम सभी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और हमारी आँख से आंसू आ जाते हैं ……मीरपुर में बसे बहुत से खुशहाल हिन्दुओं और सिखों ने विशेष रूप से मोहयाल समुदाय ने तो बहुत कुछ वहां पर बहुत कुछ खो दिया था।…फिर भी उन सब वीरों और हिम्मतवाले लोगो ने यहां आकर अपने परिश्रम और लगन से ना केवल अपने आपकों फिर से स्थापित किया बल्कि अपने मान सम्मान और संस्कृति को भी जिन्दा रखा। मेरे पिता जी,ताया जी और ऐसे सब आदर्श लोगों को वंदन।और विभाजन और आजादी की कीमत चुकाते हुए पाकिस्तान में शहीद हुए हमारे सभी पूर्वजों को भी सलाम.
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हमने आजादी का अमृत महोत्सव बडे हर्षोल्लास से मनाया इस आजादी को प्राप्त करने के साथ देश का विभाजन हुआ उस समय जो विभीषिका हुई उसे सुनकर रोंगटे खडे हो जाते है । हमारे इस कालम में बोलती तस्वीर के अन्तर्गत अपने बुजुर्गों से सुनी विभाजन की दास्तान भेज सकते है।
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