लेखिका डा.लज्जा देवी मोहन ने विभाजन की दास्तान ज़फरवाल दत्ता के बारे इस प्रकार से लिखा…
ज़फरवाल दत्ता रावी नदी के परले किनारे पर बसा हुआ था।अतः यह गांव देश विभाजन के समय पाकिस्तान क्षेत्र में चला गया गया। इस गांव में कई महान व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने समाज की सेवा की और आर्य समाज के प्ररचारक रहे।कुछ सेना में भर्ती हुए।
इस गांव की तीन पत्तियां थी।एक पत्ती मे सरदार सरूप सिंह जी व अन्य थे। हमारी पत्ती में मेहता गणेश दास दत्त, मेहता ठाकुर दास दत्त, मेहता निरंजन दास दत्त(मेरे दादा जी) महाशय कर्मचंद दत्त( मेरी सास के पिता जी) मेहता हरिचंद दत्त( मेरी सास दुर्गावती के चाचाजी) मेहता राम दास दत्त, मेहता गणेश दास दत्त, महाशय कर्मचंद जी (आर्य समाज के प्रचारक) रहते थे।जो लोग सेना में भर्ती हुए उन्हें सरकार ने लायलपुरा अब पाकिस्तान में है जमीन दे दी थी।वह वहां बस गए जैसे सरदार सरूप सिंह,सरदार काका सिंह आदि।मेरे दादाजी मेहता निरंजन दास भी सेनिक थे।उन्हें भी लायलपुर की तहसील समुद्री मे जमीन दी थी वे वहां बस गए थे। इसी प्रकार सरदार सरूप सिंह(ताया जी)लायलपुर के गांव मे बस गए थे।
काका सिंह आदि।मेरे दादाजी मेहता निरंजन दास भी सेनिक थे।उन्हें भी लायलपुर की तहसील समुद्री मे जमीन दी थी वे वहां बस गए थे। इसी प्रकार सरदार सरूप सिंह(ताया जी)लायलपुर के गांव मे बस गए थे।
स्वामी दयानंद ने समाज में छुया छूत,अंध विश्वास आदि को रोकने के लिए आर्य समाज की स्थापना की ,बाल विवाह जैसी समाजिक बुराइयों को रोक लगाई। आर्य समाज ने समाज में फैल रही त्रुटियों को दूर किया। ज़फरवाल दत्ता के महान प्रचारकों में बडा योगदान है।
महाशय कर्मचंद जी ( मेरे नाना ससुर) भी आर्य समाज संस्था के प्रचारक रहे। ये लोग ज़फरवाल से बाहर ही थे। जो लोग ज़फरवाल मे थे वह सेना में भर्ती हो गए थे। उन्हें अग्रेजों ने लायलपुर अब पाकिस्तान जिले की तहसील समुद्री में जमीन दे दी थी। वे वहां बस गए थे। महाशय कर्मचंद के छोटे भाई मेहता हरिचंद जी थे।
देश विभाजन के समय मेहता हरिचंद जी ज़फरवाल मे ही थे। ज़फरवाल के कई स्त्रियों, बच्चों को मुसलमानों ने चाकूओ से घायल कर दिया।कुछ लोग तडप रहे थे,पानी पानी के लिए कराह रहे थे। मेहता हरिचंद घायलों को अपना पराया न देखते हुए पानी पिला रहे थे।मेरे ताया जी ने उन्हें कहा हमारे साथ चलो। परन्तु उन्होंने कहा जो बच गए हैं उन्हें काफिले के पास ले जाओ। में उन्हें तडपते छोड़ कर नही जाना चाहता।पता नहीं उनका क्या होगा।
मेरी मासी श्रीमती चानन देवी व उनके देवर मेहता हंसराज नम्बरदार भी वही रहते थे।।देश विभाजन के बाद उन्हें कुरूक्षेत्र के पास जमीन मिली थी। वह लगभग सौ बर्ष आयु के बाद स्वर्गवास हुए।
( डा.लज्जा देवी मोहन मो.न. 9671432717 )
मोहयाल गौरव जीएमएस अध्यक्ष विनोद दत्त मोहयाल इतिहास की शोधकर्ता डा.लज्जा देवी मोहन को उनके निवास स्थान पंहुचकर संमानित करते हुए डा.मोहन ने उन्हें स्नेह भरा आर्शीवाद दिया।