महान क्रांतिकारी भाई परमानंद जी के जन्मदिन पर विशेष लेख: जीके छिब्बर

मोहयाल समाचार
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परमानंद जी का जन्म 04 नवंबर 1876 को गांव करियाला,जिला जेहलम (अब पाकिस्तान) में हुआ था। प्रांरभिक शिक्षा चकवाल में हुई उसके बाद लाहौर चले गए।
सन् 1903 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की तथा डीएवी कॉलेज लाह़ौर में प्राध्यापक हो गए।
चकवाल में ही भाई परमानंद पर आर्य समाज का असर पड़ गया चुका था।डीएवी कॉलेज में पढाई करते समय युवाओं में वैदिक हिन्दू धर्म तथा मातृभूमि की स्वतंत्रता के विचारों का प्रचार करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।डीएवी कॉलेज आर्य समाज के सिद्धांतों पर स्थापित किया गया था।
भाई जी उसके आजीवन सदस्य थे बतौर वैदिक धर्म प्रचारक दक्षिण अफ्रीका के प्रवास पर भाई परमानंद की भेंट महात्मा गांधी से हुई तथा वे कुछ समय महात्मा गांधी के साथ ही रहें। डरवन में गांधी जी की अध्यक्षता में भाई जी का एक भाषण हुआ, जिसमें गांधी बेहद प्रभावित हुए। उसके बाद जोहान्सर्वा में भाई जी परस्पर वैचारिक सहयोग लंबे समय तक चला।
पढते पढते बडी देश भाक्ति:1910 के आसपास भाई जी उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए, जहां उन्होंने इतिहास पर शोध लेखक किया। लंदन प्रवास के दौरान ही वे वीर सावरकर, लाला हरदयाल, श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे महान क्रांतिकारीयों के संपर्क में आए। धीरे धीरे जैसे ही देशभक्ति की भावना उनके भीतर सुलगने लगी,तो अपना अध्ययन एवं सरकार द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति त्याग कर मातृभूमि की सेवा के लिए वापस भारत लौट आए। उस समय तक देश में आजादी की क्रांति उबाल पर थी।
लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल विभाजन किएं जाने को लेकर स्वदेशी बायकॉट आंदोलन का पूरे देश में क्रांति का जबर्दस्त माहौल था।
असरदार थे उनके विचार:-गेली लग जाने से एक सिख युवक भाई जी के पास मरहम पट्टी कराने आया। भाई जी ने उससे पूछा कि वह क्या काम करता हैं, तो उस ने बताया वह हवाई जहाज बनाने वाली कंपनी में काम करता हैं और हवाई जहाज चलाने की ट्रनिंग लेना चाहता है।भाई जी ने उसे भारत की गुलामी एवं गुरूगोविन्द सिंह की कुर्बानी का इतिहास बताया तथा देश को आजाद कराने के लिए प्रयास करने की शिक्षा दी। भाई जी की शिक्षा से प्रभावित हो कर उस युवक ने उसी वक्त से देश को को आजाद करवाने का संकल्प लिया और ऐसा ही किया।उस युवक को आज जाबांज क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा के नाम से जानते हैं।
कालापानी की सजा मिली:-1913 में भाई जी वापस भारत आए और अपने औषधि कार्य के साथ साथ गदर आंदोलन आरंभ किया। इसके तहत उन्होंने एक राष्ट्व्यापी योजना बनाई और उतर भारत के प्रमुख्य शहरों की छावनीयों में कार्यरत जवानों को विरोध के लिए तैयार कर लिया, किंतु अग्रेजों को उनकी योजना का पता चल गया।अग्रेजों ने उन पर बेतुके आरोप लगा कर फांसी की सजा सुना दी गई, लेकिन अंतिम क्षणों में उनकी सजा को बदल कर कालापानी करते हुए उम्रकैद की सजा सुना कर अंडमान भेज दिया गया। वही लाह़ौर षडयंत्र मामले में करतार सिंह सराभा को फांसी की सजा सुनाई गई । मात्र 19 वर्ष के अल्पायु में उन्हें 1915 में फांसी पर लटका दिया गया।
देश का विभाजन नहीं भाया:- 1933 में भाई जी हिन्दू महासभा के अध्यक्ष बने।भारत के विभाजन का उन्हें गहरा अघात लगा और 8 दिसंबर को जालंधर में ब्रहमलीन हो गए। 20 फरवरी 1979 को केन्द्र सरकार ने डाक टिकट जारी किया ।
मध्यप्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल तथा प्रख्यात शिक्षाविद डाक्टर भाई महावीर ,भाई परमानंद के सुपुत्र थें।

लेखक : वरि.अधिवक्ता जीके छिब्बर भोपाल

  लेखक जीके छिब्बर  भाई महावीर से मोहयाल कांफ्रेंस भोपाल में गर्मजोशी से मिलते हुए।

मोहयाल कांफ्रेंस भोपाल के सफल आयोजन के लिए जीएमएस अध्यक्ष रायजादा बीडी बाली द्वारा विशेष संमान प्राप्त करतें हुए (उस समय भोपाल मोहयाल सभा के सेक्रेटरी थे जीके छिब्बर)

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