पहलगाम के शहीदों को भावपूर्ण श्रदांजलि
यह कैसी जन्नत है भाई, यहाँ भला कैसा भाईचारा है ।
कितने ही बेक़सूर मासूमों को, धरम पूछ कर मारा है ।।
गए जो वहां यह सोच, कुदरत के गज़ब नज़ारे होंगे।
जिसे कहते है जन्नत वहां, सब ही मंज़र प्यारे होंगे ।।
हमारे जाने से, वहां के भाइयों को मिलेगी रौजी रोटी ।
मेहमान नवाज़ी को ईबादत मानते वहाँ पर सारे होंगे ।।
क्या पता था पापियों ने, मन में कुछ और ही धारा है ।
कितने ही बेक़सूर मासूमों को, धरम पूछ कर मारा है ।।
कई वहां पर होंगे धूर्त, जो देते है भेद करते है ईशारा ।
उन धोखेबाज़ कमीनों ने, छल से है निहत्थों को मारा ।।
कितनी हंसती खेलती सुहागनों का सुहाग उजड़ गया ।
कितने ही माँ बाप और बच्चों का, छिन्न गया सहारा ।।
जलियाँ वाला बाग जैसा मंज़र, कश्मीर में पसारा है ।
कितने ही बेक़सूर मासूमों को, धरम पूछ कर मारा है ।।
हरगिज़ न फ़र्ज़ी बने हम बल्कि अपना फ़र्ज़ पहचाने ।
जो पीठ पे घौंपता खंज़र उसको पक्का दुश्मन माने ।।
जो देशहित में न बोले बहिष्कार हो उन कपटियों का ।आतंकियों और मददगारों को चुन कर लगाए ठिकाने ।।
तो सोचो पहलगाम के शहीदों का हमने क़र्ज़ उतारा है ।
कितने ही बेक़सूर मासूमों को, धरम पूछ कर मारा है ।।
यह कैसी जन्नत है भाई, यहाँ भला कैसा भाईचारा है । कितने ही बेक़सूर मासूमों को, धरम पूछ कर मारा ।।
संदीप छिब्बर