हिन्दी दिवस पर विशेष लेख जाने माने वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल कृष्ण छिब्बर ने ” उच्च न्यायिक प्रक्रिया में हिन्दी की उपेक्षा पर अपने विचार रख रहे हैं। हमें संकल्प लेना चाहिए अपनी मातृभाषा को प्रफुल्लित करना चाहिए इससे राष्ट्रीय एकता को मजबूती मिलेगी ।
स्वतंत्रता का अमृतकाल हो चुका है परंतु उच्च न्यायिक प्रक्रिया में अभी भी हिन्दी उपेक्षित है हालांकि जिला न्यायालयों में हिंदी भाषा का प्रचलन बड़ गया है अ हिन्दी राज्यों के जिला न्यायालयों में भी स्थानीय भाषा का प्रचलन है परन्तु यह दुर्भाग्य पूर्ण है की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पश्चात भी हम न्यायिक प्रणाली में विदेशी भाषा का सहारा लेने पर मजबूर क्यों है केंद्र भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार दो बार सत्ता में रह चुकी हे और तीसरी बार भी गठबंधन के साथ बन गई है परंतु हिंदी राष्ट्रभाषा का सम्मान नही बना पाई है जो विचारणीय विषय है।
हमारी न्याय प्रणाली ब्रिटिश प्रणाली पर आधरित है इसलिए अंगेजियत का प्रभाव है हालांकि 1 जुलाई 2024से तीन आपराधिक कानूनों के नामों का हिंदीकरण किया गया है कुछ प्रावधान जोड़े है कुछ समाप्त किए हैं लेकिन यह आंशिक प्रयास है ।
देश की सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में अभी भी अंग्रेजी में ही याचिकाएं स्वीकार की जाती है जो अंग्रेजी अधिपत्य का प्रमाण है देश की पीड़ित जनता इसी पर निर्भर है निर्णय अंग्रेजी में अधिकांश कानून की पुस्तक अंग्रेजी में सुनवाई अंग्रेजी में पक्षकार समझ ही नही पाता की क्या हो रहा है हालांकि मध्यप्रदेश एवम छत्तीसगढ़ राजस्थान उच्चन्यायालय कई
न्यायाधीश हिंदी भाषा में तर्क सुन रहे है प्रश्न करते है जो अच्छा संकेत है परंतु कुछ जनहित वाले निर्णय हिंदी में भी दे तो अच्छा होगा ।
सर्वोच्च न्यायालय में भी अब अनेक हिंदी जानने वाले न्यायाधीश हैं जो हिंदी में तर्क सुन सकते उसका प्रयास करना चाहिए अधिवक्ताओं को भी हिन्दी में तर्क करने का प्रयास करना चाहिए ताकि आम जनता भी सुनवाई को सुन ओर समझ सके क्योंकि आजकल सीधा प्रसारण भी होता है ।
महात्मा गांधी जी ने कहा था कि ज्ञान का प्रसार राष्ट्र भाषा के बिना संभव नहीं राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा हैं इसी तरह विचारक राममनोहर लोहिया ने कहा था कि अंग्रेजी में जीतना झूठ बोलना है बोलिए धोखा दीजिए सब चलता है क्योंकि लोग समझेंगे ही नही भाषा से देश की सभी समस्याओं का सम्बंध है आज कुछ लोग विदेशी सभ्यता के गुलाम हो गए हैं यह बात भाषा पर भी लागू होती है।
विदेशी विद्वान वाटर चेनिंग ने बहुत ही सटीक कहा था कि भारत साहित्य में इतना पिछड़ा क्यों है उन्होंने कहा कि भारत ने उस देश की भाषा को अपना रखा है जो हर बात में उनसे भिन्न है इसी तरह थामस डेविस ने कहा कहा था कि कोई राष्ट्र अपनी मातृभाषा छोड़कर राष्ट्र नही कहला सकता मातृभाषा की रक्षा सीमा की रक्षा से ज्यादा जरूरी है अनेकों विद्वानों के कथन अनुसार हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि देश की न्याय व्यवस्था में हिंदी भाषा के सभी न्यायालयों में उपयोग आज की आवश्यकता है अंग्रेजी के ज्ञान में कोई बुराई नही है परंतु हिंदी की अपेक्षा कर अंग्रेजियत का हव्वा बनाए रखना देश हित में नहीं है