आधुनिक भारत में हिन्दी संपर्क भाषा के रुप में जानी जाती है। समग्र राष्ट्र के बड़े हिस्से के लोग इस भाषा को बोल व समझ सकते है। हिन्दी बोलने व समझने वालों की दृष्टि में यह विश्व की भाषाओं में तीसरे स्थान पर आती है। हिन्दी की ग्राह्य क्षमता और सरलता ने ही इसे संपर्क भाषा का रुप प्रदान किया है। किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र को अपने कारोबार व व्यवहार के लिए अपनी एक स्वीकृत भाषा तय करनी होती है। हमारा देश एक विशाल भूभाग में फैला हुआ है। इसके प्रत्येक प्रदेश की आबादी करोड़ो में है।हमारे देश में यात्रियों और प्रवासियों के लिए एक संपर्क भाषा हिन्दी का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। विभिन्न प्रदेशों में यात्रा करते समय टूटी -फूटी हिन्दी भाषा भी संवाद करने के लिए काफी मददगार साबित होती है। हिन्दी एक सरल एवं लोकप्रिय भाषा है। यह एक ऐसी पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है जो जैसी बोली जाती है,वैसी ही लिखी जाती है और वैसी ही पढ़ी जाती है। हिन्दी भाषा हमारे देश के कोने -कोने में बोली और समझे जाने वाली लोकप्रिय भाषा बन चुकी है। भाषा हमारे विचारो की अभिव्यक्ति एवं संवाद का सबसे प्रभावशाली माध्यम होता है। भारत का कोई भी व्यक्ति इस विशाल देश में किसी भी प्रदेश या समुदाय में जाए तो हिन्दी भाषा के सहारे संवाद संप्रेषण कर सकता है। यह हिन्दी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता है। हम घर में ,बाज़ार में, बस में ,रेलगाड़ी में हिन्दी में बाते करते है ,हिन्दी फिल्में देखते है हिन्दी फिल्मी संगीत सुनते है जिससे पता चलता है कि हिन्दी की हैसियत पूरे भारत में राष्ट्रभाषा से लेकर संपर्क भाषा तक की है।
हिन्दी भाषा का भविष्य निश्चय ही अत्यंत उज्ज्वल है आज समूचे विश्व में भाषा कि दृष्टि से जो हिन्दी भाषा का तीसरा स्थान है तो भला हिन्दी को संपर्क भाषा के रुप में इसे महत्व देना और स्वीकार करना क्यों संभव नही है। आज अँग्रेजी के हमारे देश में आवश्यकता से अधिक प्रचलन से न केवल हिन्दी को अपितु अन्य भारतीय भाषाओं की भी हानि हुई है। दुनिया के किसी भी कोने में खेलों या अन्य किसी भी सम्मेलनों का आंखो देखा हाल हिन्दी में भी प्रसारित किया जाता है । स्पष्ट है कि सारे विश्व में हमारे देश की भाषा हिन्दी ही मान्य है फिर भला भारत में हिन्दी को संपर्क भाषा के रुप में अपेक्षित एवं उचित सम्मान क्यों नहीं मिल पाता। हिन्दी हमारी संस्कृति की धरोहर है इस भाषा ने हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को जीवित रखा है। हिन्दी को राष्ट्रीयता से जोड़ने के लिए संकल्प लेने की जरूरत है। पर यह बात गौरतलब है कि अधिकांश जनमानस जो हिन्दी दिवस मनाते है सभागार से बाहर निकलते हीअँग्रेजी भाषा बोलने लगते है। हिन्दी भाषा की उपेक्षा हमारी अस्मिता का अपमान है। हिन्दी भाषा के पास विश्व बंधुत्व की शक्ति है। देश का प्रत्येक नागरिक हिन्दी की क्षमता को पहचाने और समृद्धि में पूरे मनोयोग से अपना अमुल्य योगदान करें ताकि देश की एकता का प्रतीक बने। हम अँग्रेजी भाषा के विरोधी नहीं है किंतु यदि हमें अपने राष्ट्र और राज्य को आगे बढ़ाना है तो हमें हिन्दी भाषा में ही शिक्षा देनी चाहिए।राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के लिए हिन्दी भाषा एक सशक्त एवं महत्वपूर्ण माध्यम बन सकती है। हिन्दी भाषा का प्रसार प्रचार करना एक राष्ट्रीय कार्य है। इसको नहीं सीखना भी राष्ट्रीयता की कमी है। हम सभी हिन्दी भाषा के जानकार बने जिससे यह संपर्क भाषा के रुप में हर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा जानी जा सके।
सत्येन्द्र छिब्बर,
17/653 चौपासनी हाऊसिंग बोर्ड
जोधपुर. 342008(राजस्थान)