1936 में बर्लिन ओलंपिक हॉकी टीम का हिस्सा रहे फारवर्ड खिलाड़ी डी.एन. मेहता का नाम भारतीय खेल इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। इस टीम के कप्तान महान हॉकी जादूगर मेजर ध्यानचंद थे, जबकि गोलकीपर की भूमिका में रिचर्ड एलेन ने शानदार प्रदर्शन किया। भारत ने इस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया।
हाल ही में हमें रिटायर कैप्टन ओलंपियन डी.एन. मेहता के सुपुत्र अनिल डी. मेहता से मिलने का अवसर मिला। उन्होंने भावुकता से पिता की स्मृतियों को साझा करते हुए बताया कि किस प्रकार उनके दूरदर्शी विचारों ने जीवन की दिशा बदल दी।
अनिल जी कहते हैं –
“पिताजी ने मुझे प्रेरित किया कि जालंधर में खेल उद्योग स्थापित किया जाए। यह मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था, क्योंकि मेरा जन्म, लालन-पालन और शिक्षा मुंबई में हुई थी। मुझे अंग्रेज़ी और मराठी का ज्ञान था, हिंदी बहुत कम आती थी। लेकिन जालंधर आकर मैंने हिंदी और पंजाबी भी सीख ली।”
अनिल जी ने आगे बताया कि विभाजन से पहले उनके दादा जी की रावलपिंडी में ‘पिंडी स्पोर्ट्स’ नामक मशहूर दुकान थी। उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए जालंधर में पिता जी द्वारा स्थापित खेल उद्योग को उन्होंने नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया।
आज महाराजा ब्रांड की हॉकी, रैकेट्स और अन्य खेल उपकरण न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी बड़ी मांग रखते हैं। अनिल जी मानते हैं कि यह सब उनके पिता डी.एन. मेहता जी के मार्गदर्शन और प्रेरणा का ही परिणाम है।
मेहता परिवार अपनी मिलनसार प्रवृत्ति और खेल-जगत से जुड़ाव के कारण समाज में विशेष पहचान रखता है
प्रेरणादायी उद्धरण “पिताजी का सपना था कि खेलों को नई दिशा दी जाए। उनकी प्रेरणा से ही मैंने जालंधर में खेल उद्योग स्थापित किया। आज हमारी पहचान देश से लेकर विदेश तक है – यह सब उन्हीं के मार्गदर्शन की देन है।”
अनिल डी. मेहता सुपुत्र डीएन मैहता (दीनानाथ मेहता)
प्रस्तुतिः अशोक दत्ता