“शब्द प्रतिभा बहुक्षेत्रीय सम्मान फाउंडेशन नेपाल द्वारा आयोजित “अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2024 में आकांक्षा दत्ता गुरूग्राम की कविता चयनित हुई और सम्मान पत्र प्रदान किया गया।”
यह आकांक्षा दत्ता को “शुन्य” कविता पर मिला है।
शीर्षक:- शुन्य
बस एक शुन्य हूँ मैं ,
ना आदि है ना अंत।
ना शरीर है ना आत्मा ,
बस एक शुन्य हूँ मैं ।
रात के घने अंधेरे की तरह ,
जिसने सच भी खो सा जाता है ।
बस एक शुन्य हूँ मैं ।
साथ में चलते साये की तरह ,
जो ख़ामोश रहकर भी सब कुछ कहना चाहता है ,
बस एक शुन्य हूँ मैं ।
मुरझाए हुए उस फूल की तरह ,
जो खिल के फिर एक बार जीना चाहता है ।
बस एक शुन्य हूँ मैं ।
आँखों में ठहरे आँसू की तरह ,
जो बहकर अपना दर्द बतलाना चाहता है ।
बस एक शुन्य हूँ मैं।
मेरा ना कोई वजूद है ना कोई अस्तित्व ,
ना कोई अपना ना पराया ।
ख़ुद ही को खोजता ख़ुद ही में खोया ।
बस एक शुन्य हूँ मैं।
मेरा ना आदि है ना कोई ।
आकांक्षा दत्ता
गुरूग्राम