मोहयालो के खून में तिरंगे के तीन रंग : संदीप छिब्बर

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मोहयालो का इतिहास शुरु से ही बलिदान, त्याग और वीरता से भरा रहा है। केसरिया रंग जो वीरता और बलिदान का प्रतीक हैं, मोहयालो के साथ शुरू से जुड़ा हुआ है। बाबा परागा, भाई मतिदास, भाई सतिदास की वीरता और कुर्बानी भला कौन भूल सकता है।कहा तो यह भी जाता है कि बनारस के अलावा ईरान, अफगानिस्तान के प्राचीन राजा भी मोहयाल शाखा के थे। इनमें से सबसे प्रमुख अफ़ग़ानिस्तान का प्राचीन शाही साम्राज्य है, जो मोहयालो का महान साम्राज्य था, जिसने भारत में सबसे पहले युद्ध में अरबों को मार डाला और ऐसी हार दी कि अगले 300 वर्षों तक कोई भी हमला नहीं कर सका। आजादी की लडाई में भी मोहयालो ने विशेष योगदान दिया और आज भी भारतीय सेना और प्रशासनिक पदों पर मोहयालो की काबिलियत और कुशल नेतृत्व के विशेष चर्चे होते हैं।

सफेद रंग की बात करे तो मोहयालो में वीरता के साथ साथ बुद्धिमत्ता और सरबत दा भला की भावना भी कूट कूट कर भरी हुई है। उदाहरण के तौर पर 1987 में सुनील दत्त जी ने विकट हालातों में भी मुम्बई से अमृतसर तक देश की एकता और अखंडता के लिए शान्ति मार्च निकाला था जिसने देश में फिर से एकता की भावना भर दी।

मोहयालो ने राज्यपाल और मंत्रियों के पद पर रहते हुए समाज और देश की सेवा की है ।मोहयालो ने देश को तीन राज्यपाल दिए भाई महावीर राज्यपाल मध्यप्रदेश, लेफ्टिनेंट जनरल बी.के.एन.छिब्बर पंजाब और बक्शी एस.के.छिब्बर लैफ्टिनेंट गवर्नर मिजोरम एवं केंद्रीय राज्यमंत्री सुनील दत्त, बोध राज बाली जेएंडके में परिवाहन मंत्री एवं हिमाचल में आर.एस.बाली परिवाहन मंत्री रहे यह सभी व्यक्तिगत तौर पर भी मोहयाल बिरादरी और सामाजिक कार्यों में अग्रणी रहे।

हरे रंग की बात करे तो देश को जितना खुशहाल मोहयालो ने बनाया है, उतना शायद किसी और ने नहीं। बंटवारे का सबसे ज्यादा नुक्सान मोहयालो को ही हुआ था। मोहयालो को बंटवारे में अपने खुशहाल गांवों शहरों, घर बार, जायदाद ज़मीन, पूंजी गहनो को पाकिस्तान में ही छोड़ना पड़ा। कितने लोगों ने अपने पारिवारिक सदस्य खो दिए और कितने बच्चे तो अनाथ हो कर यहां आये लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

यहां आकर मोहयालो ने शुन्य से शुरुआत कर के भी ना केवल अच्छी शिक्षा ग्रहण की, कई उधोग स्थापित किए, ऊंचे पदों पर आसीन हूए बल्कि कई विरान स्थानों को भी आबाद कर दिया।और हरे रंग के साथ ही जुड़ी इतिहासिक घटना जिस में हमारे दत्त भाईयों ने कर्बला में हूसैन के लिए अपनी कुर्बानी दी थी, को भला कौन भूलेगा।.

देश की आजादी प्राप्त करने के लिए मोहयालो ने अपना बलिदान दिया भाई बालमुकुंद छिब्बर, राम रक्खा बाली की शहादत को भुलाया नही जा सकता वही भाई परमानंद जिन्होंने आजादी आंदोलन में बढचढ कर योगदान दिया आजादी प्राप्त करने वाले वीर भाई जी को अपना मार्ग दर्शक मानते थे।

आज जालंधर में मोहयाल भवन पर तिरंगे को लहराते देख कर हार्दिक प्रसन्नता हुई।

आज जालंधर में निकली तिरंगा यात्रा में मैं भी शामिल था और मैं जब तिरंगा यात्रा में भवन के आगे से निकला तो गर्व से सीना चौड़ा हो गया। फिर से जालंधर मोहयाल सभा के अध्यक्ष नंद लाल वैद, कार्यकारिणी के सभी सदस्यों और मोहयाल भवन के निर्माण में सहयोग करने वाले सभी दानवीरों का धन्यवाद जिनकी बदौलत आज हम अपनें भवन पर तिरंगा लहरा सके हैं।

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