स्वामी सत्यानंद महाराज ‘ लौ’ संस्थापक श्री राम शरणम् मिशन

मोहयाल समाचार साहित्य जगत
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लेखक:पुष्प बाली की पुस्तक मोहयाल रत्न से

मोहयाल समाज वीरता और सदाचार का उदाहरण है तथा ये लोग देश सेवा, धर्म रक्षा के लिए जीवन बलिदान करने से कम नहीं सोचते। इनके योध्दा संस्कार परंपरा से स्थापित हैं। इस समाज में जहां शूरवीर पैदा हुए, वही ऐसे महासंत,युग प्रवर्तक महान गुरू स्वामी विरजानंद सरस्वती दण्डीजी,बाबा वीरम शाह दत्त, बाबा ठक्कर जी दत्त, बाबा गरीब दास दत्त के साथ साथ श्री राम शरणम् मिशन के संस्थापक स्वामी सत्यनंद जी महाराज की देन भी इसी समाज को देन हैं। महाराज जी जैसे विद्वान को पाकर समाज निहाल हो गया।
योगसिद्ध पुरूष, समाज सुधारक व दिव्य मूर्ति स्वामी सत्यानंद जी महाराज का जन्म 26 अप्रैल 1861 क़ गांव जग्गू का मोरा, जिला रावलपिंडी, पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) में मोहयाल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। स्वामी जी बचपन से ही धार्मिक व सांस्कृतिक व्यक्तित्व के मालिक थे। बाल्यकाल मे ही माता- पिता का निधन हो गया।इनका पालन पोषण इनकी नानी जी ने किया, जिनका जेहलम नदी के निकट अंकरा नामक स्थान पर गांव था।
जब स्वामी जी की आयु दस साल की हुई तो इनकी नानी जीका भी देहांत हो गया। उसके पश्चात स्वामी जी ने कुछ विद्वानों के सत्संग से संस्कृत का अध्ययन किया और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया। स्वामी जी को 17 वर्ष की आयु में जैन साधुओं की संगत प्राप्त हुई और स्वामी जी नेजैश धर्म ग्रंथों का खूब अध्ययन किया। इन्होंने अनुभव किया कि एकांत साधना ही पर्याप्त नहीं हैं। धर्म का उद्देश्य केवल व्यक्ति का उध्दार नहीं हैं इससे समाज का भी उत्थान होना चाहिए। कालांतर में स्वामी जी ने दस उपनिषद विधिपूर्वक पढे़। वेदांत सूत्र भी शंकर भाष्य सहित पढ़ें।
स्वामी सत्यानंद जी को सन् 1925 में स्वामी दयानंद में स्वामी दयानंद जन्ममहोत्सव के समय मथुरा में एकान्तवास करने की आंतरिक प्रेरणा हुई, जिसके अनुसार स्वामी जी ने हिमाचल प्रदेश में डल्हौजी नामक स्थान पर अनवरत साधना आरंभ की। कुछ समय बाद स्वामी जी को ‘राम’ शब्द बहुत सुंदर आकर्षक स्वरों में सुनाई दिया। साथ ही आदेशात्मक शब्द आया ” राम भज राम भज,राम राम”। स्वामी जी द्वारा फिर दर्शन की मांग करने पर प्रश्न हुआ किस रूप में दर्शन चाहते हो? स्वामी जी ने कहा जो आपका रूप है मैं क्या बता सकता हूं।तब यह ‘रा’ और ‘म’ अक्षरमयी ‘ राम’ रूप का तेजोमय दर्शन हुआ।आज भी यह स्थान डल्हौजी शहर में’परमधाम’ नाम से प्रसिद्ध है जहां शांति का आलौकिक रूप देखने की मिलता हैं।
स्वामी जी ने सन्1928 से सर्व सिद्ध होने पर राम नाम दान बड़े सेवा भाव से आरंभ किया।इन्होंने समय का सदुपयोग करने का महत्व दिया व मोह के संस्कार के बारे बे बतलाया कि धन का मोहयाल, तन का मोह, संबंधियों का मोह यह साधक के पांवो को जकड. लेता है। उसको आगे बढ़ने नहीं देता।
माया बहुत बलवान हैं” उनके अनुसार शेर चीते को जीत लेना आसान है, दुनिया को जीत लेना सुगम है। पर माया को जीतना बहुत कठिन हैं। जहां दैत्य आता है वहा देव भी आता हैं”। नाम आराधन एक प्रकार की आध्यात्मिक चिकित्सा हैं। उसमें से पखप- वासना स्वयं बाहर निकल जाती हैं।
स्वामी सत्यानंद जी द्वारा रचित भक्ति प्रकाश, भगवान वाल्मीकि रामायणसार,श्रीमद् भगवत् गीता, एकादशोपनिषद सग्रंह, प्रवचन पीयूष, प्रार्थना और उसका प्रभाव, उपासक का आंतरिक जीवन,भक्ति और र भक्त के लक्षण, सुन्दरकांड, स्थित के प्रज्ञ के लक्षण, भतन और ध्वनि सग्रंह, अमृतवाणी नामक कई महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं।
स्वामी जी के व्यक्तित्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महात्मा गांधी जी भी स्वामी जी की सादगी व आध्यात्मिक से प्रभावित हुए बिना न रहे सके।उन्होने स्वामी जी से राम नाम की दिक्षा ली थी । जो माला महात्मा गांधी ने मरते वक्त अपने पास थी वह भी स्वामी जी द्वारा ही राम नाम दीक्षा के दौरान महात्मा गांधीजी को प्रदान की गई थी। स्वामी जी ने योग ग्रंथों में जिन सिद्धियों का वर्णन किया है वे उन्हें सहज ही प्राप्त थीं। परन्तु उनके व्यक्तित्व को देखकर कोई भी व्यक्ति उनकी सिध्दि और महत्ता को जान नहीं पाता था। उन्होंने अपने व्यक्तित्व को रहस्य के पर्दे में छिपाए रखा था।उन्होंने अपने जीवन का निचोड़ अपने ग्रंथों में भर दिया। स्वामी सत्यानंद जी ने नामयोग द्वारा समाज को बतलाया कि इसमें भगवान की कृपा से ही हमें सब कुछ प्राप्त होता है। इसलिए हमें भगवान की कृपा पर बड़ा विश्वास होना चाहिए।
आसुरी शक्तियों को मारने के लिए भगवान का नाम परम सिद्ध हैं।स्वामी सत्यानंद जी 13 नवंबर 1960 को रात के दस बजे अपना भौतिक चोला छोड कर राम चरणें में’ब्रह्मलीन’ हो गए तथा ‘रामशरणम् मिशन’ का उद्घोषणा कर गए। …

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